"हरिया, चाय पियेगा?" सोफे पर बैठे बैठे राजेश ने गाँव से आये मजदूर से पूंछा. राजेश सरकारी वन विभाग में क्लर्क है. भगवान की कृपा दूसरे रास्ते से इतनी बरसती है कि कोई कमी नहीं है. गाँव में कुछ जमीन है जिसे गाँव के ही कुछ भूमिहीन लोग खेती के लिए इस्तेमाल करते हैं. उससे भी कुछ आमदनी हो जाती है. हरिया वही "आमदनी" देने आया था.
"हाँ मालिक, पी लेंगे" हरिया ने भी जवाब दिया, वह कमरे के गेट के पास उकडू मारे बैठा था.
"वो तिखाल में गिलास रखा है, उसे पानी से ऐसे ही धो ले" राजेश ने इशारे से गेट के ही पास बने तिखाल में रखे स्टील के गिलास की तरफ ऊँगली दिखाते हुए कहा.
"दिव्या, जा बेटा, अंकल जी के लिए नल चला दे" राजेश ने अपनी बेटी को आदेश के स्वर में कहा.
वैसे तो राजेश अपनी बेटी से बहुत प्यार करता हैं मगर ये आदेश अति अनिवार्य था. उसके नल की पवित्रता का सवाल था. कैसी विडम्बना होगी, नल सारी दुनिया को धोता है और कहीं ऐसा ना हो जाये कि नल ही धोना पड़ जाये.
दूसरे सोफे पे राजेश का लड़का बैठा हुआ था. छुट्टियाँ में आया हुआ था. लड़का इंजीनियरिंग के दूसरे साल में था. बिजली चले जाने की वजह से टीवी बंद हो गया तो उसे बिना मन से उसी कमरे में रहना पड़ा.
वहां बैठे बैठे सोचने लगा, भाषा का भी अलग खेल है, पापा जानकार कभी "हरिया जी" ना कहते. मगर अंकल के साथ उन्हें "जी" कहना पड़ा.
भाषा के फेर में उसे शब्दों में वो सम्मान मिला जिसे ना लेने वाला जनता था ना देने वाला.
"हाँ मालिक, पी लेंगे" हरिया ने भी जवाब दिया, वह कमरे के गेट के पास उकडू मारे बैठा था.
"वो तिखाल में गिलास रखा है, उसे पानी से ऐसे ही धो ले" राजेश ने इशारे से गेट के ही पास बने तिखाल में रखे स्टील के गिलास की तरफ ऊँगली दिखाते हुए कहा.
"दिव्या, जा बेटा, अंकल जी के लिए नल चला दे" राजेश ने अपनी बेटी को आदेश के स्वर में कहा.
वैसे तो राजेश अपनी बेटी से बहुत प्यार करता हैं मगर ये आदेश अति अनिवार्य था. उसके नल की पवित्रता का सवाल था. कैसी विडम्बना होगी, नल सारी दुनिया को धोता है और कहीं ऐसा ना हो जाये कि नल ही धोना पड़ जाये.
दूसरे सोफे पे राजेश का लड़का बैठा हुआ था. छुट्टियाँ में आया हुआ था. लड़का इंजीनियरिंग के दूसरे साल में था. बिजली चले जाने की वजह से टीवी बंद हो गया तो उसे बिना मन से उसी कमरे में रहना पड़ा.
वहां बैठे बैठे सोचने लगा, भाषा का भी अलग खेल है, पापा जानकार कभी "हरिया जी" ना कहते. मगर अंकल के साथ उन्हें "जी" कहना पड़ा.
भाषा के फेर में उसे शब्दों में वो सम्मान मिला जिसे ना लेने वाला जनता था ना देने वाला.