Tuesday, 24 May 2022

गिल-गिल

चम्पक वन की सबसे दक्षिणी पहाड़ी पर गिल-गिल गिलहरी अपनी माँ के साथ रहती थी । तीन किलोमीटर की दूरी पर ही एक बड़ा झरना था । कहते हैं कि वहां इतना शोर होता है कि किसी भी गिलहरी के कान फट जाएँ । लेकिन गिल-गिल ये सब नहीं मानती थी । उसे पता था कि ये सब बड़े बुजुर्गों का बनाया गया एक बहाना है ताकि हम ज्यादा बाहर ना जाएँ । इतना ही शोर होता तो यहाँ तक ना आता? ऐसा गिल-गिल कई बार अपनी माँ से कह चुकी थी । माँ गुस्से में हर बार यही कहती कि खबरदार जो कभी वहां जाने का सोचा भी । आज माँ ने फिर बताया कि गिलचद्र का बेटा ऐसा सोचता था । झरने के शोर से वहीं गिर गया और कभी वापस नहीं आया ।

“वही झरने में बहकर ना जाने..... है भगवान्!”

“और किसने देखा उसे गिरते हुए? वह नहीं गिरा झरने में?” गिल गिल ने आज फिर पूछा ।

“अरे, उसने दूर से देखा होगा इसमें इतना बहस करने वाली बात क्या है?”

“सब कहानी है मां, आपको हम को डराने के लिए ताकि हम बड़े वाले पीपल के पेड़ से आगे ना जाएँ । ना जाने क्या होगा वहां कौन जाने” ।

 “उसके पार जाने की जरूरत ही क्या है? सब कुछ तो बड़े पीपल के इस पार ही मिल जाता है । अब तैयार हो जाओ अखरोट लेने जाना है” ।

यह रोज-रोज के अखरोट बटोरने के काम से गिल गिल अब ऊब गई थी ।

“क्या रोज-रोज बाहर जाकर अखरोट जमा करना । अगले चार महीने तक के अखरोट पड़े हैं हमारे पेड़ में” ।

कल ही गिल गिल अपनी सहेली को यही बता रही थी कि पिछली बार इसमें कुछ अखरोट तो खराब ही हो गए थे । फिर भी ना जाने मां को इतना इकट्ठा करने की जरूरत ही क्या है ।

“दिन के तीन अखरोट लाने हैं उसमें भी एक हम खा लेते हैं फिर इतना ज्यादा है भी तो नहीं । और तुम उसके बाद पूरा दिन पेड़ पर सहेलियों के साथ दौड़ती फिरती हो”।

इस बात पर गिल गिल बोली कि मां जब एक ही खाना है तो एक ही क्यों नहीं लाते ।

माँ ने परेशान होकर बोला कि कितनी बार तो बताया है । गिलगेश चाचा बता रही थी कि पांच साल पहले ऐसी आंधी आई थी सारे कच्चे अखरोट ही टूट गए थे तब पेड़ों में रखें इन्हीं अखरोट से काम चलाया था ।

गिल गिल बोली, “गिलगेश बाबा चालाक हैं, वह खुद तो जाते नहीं अखरोट लेने रोज-रोज । कभी-कभी हम से ही मांग लेते हैं । अरे, कभी-कभी क्या हर तीसरे दिन ही मांग लेते हैं । आधा अखरोट दे दो । मुझे मालूम है उन्होंने ही ये कहानी बनाई है ताकि हम ज्यादा लाए और वह ले सकें” ।

माँ को गुस्सा तो आया मगर काम का समय था ।

“इतनी ही बहस करनी है तो मैं अकेले चली जाती हूं । मौसम भी खराब हो रहा है । फटाफट तीन चक्कर लगाती हूं”।

Part-1

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